Have you heard of the great Hindi writer and thinker, Rahul Sankrityayan? If you haven't, I am sure you are missing something in life. I am going to give you a small extract from his essay in Hindi here. The Hindi essay is called "athato ghumakkad-jigyasa' [Curiosity of the Eternal Traveler].
For those, who cannot read the Hindi script, you could go to View
राहुल सांकृत्यायन मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता। दुनिया दुख में हो चाहे सुख में¸ सभी समय यदि सहारा पाती है तो घुमक्कड़ों की ही ओर से। प्राकृतिक आदिम मनुष्य परम घुमक्कड़ था। आधुनिक काल में घुमक्कड़ों के काम की बात कहने की आवश्यकता है¸ क्योंकि लोगों ने घुमक्कड़ों की कृतियों को चुरा के उन्हें गला फाड़–फाड़कर अपने नाम से प्रकाशित किया¸ जिससे दुनिया जानने लगी कि वस्तुत: तेली के कोल्हू के बैल ही दुनिया में सब कुछ करते हैं। आधुनिक विज्ञान में चार्ल्स डारविन का स्थान बहुत ऊँचा है। उसने प्राणियों की उत्पत्ति और मानव–वंश के विकास पर ही अद्वितीय खोज नहीं की¸ बल्कि कहना चाहिए कि सभी विज्ञानों को डारविन के प्रकाश में दिशा बदलनी पड़ी। लेकिन¸ क्या डारविन अपने महान आविष्कारों को कर सकता था¸ यदि उसने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता। आदमी की घुमक्कड़ी ने बहुत बार खून की नदियाँ बहायी है¸ इसमें संदेह नहीं¸ और घुमक्कड़ों से हम हरगिज नहीं चाहेंगे कि वे खून के रास्ते को पकड़ें¸ किन्तु घुमक्कड़ों के काफले न आते जाते¸ तो सुस्त मानव जातियाँ सो जाती और पशु से ऊपर नहीं उठ पाती।
अमेरिका अधिकतर निर्जन सा पड़ा था। एशिया के कूपमंडूक को घुमक्कड़ धर्म की महिमा भूल गयी¸ इसलिए उन्होंने अमेरिका पर अपनी झंडी नहीं गाड़ी। दो शताब्दियों पहले तक आस्ट्रेलिया खाली पड़ा था। चीन -- भारत को सभ्यता का बड़ा गर्व है¸ लेकिन इनको इतनी अक्ल नहीं आयी कि जाकर वहाँ अपना झंडा गाड़ आते।
and the complete essay can be read at the Abhivyakti website.
In the next post, I shall furnish an English translation as well.
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